जाहा छठ घरपरिवार जोडेला
भाइ दउरा उठावेला बहिन दउरा सजावेली
जाहा लइका ला छटैती आपन आँचर से आस लगावेली
त कवनो माइ लइका के कामयाबी आ सलामती चाहेली
एगो निर्जल, निरहार बर्ती जब आस्था मे रंगेली
घर परिवार खातिर चार दिन के परब सहेली
शुद्धता के साथे चुली आ गहु घाम में सुखेला
त डुबत सुरज के अरकला दउरा घाटे पहुँचेला
उगत सुरज के साथे दाेसर अरकलसँगे कामना जुडेला
अन्तिममे प्रसाद से सबके चेहरा खिलेला आ बर्ती के छठ पुरा होकेला
आइ कभी मधेश अपने भी
अनुभव करि छठ के महान् पावन पबनी
सलोनी कुमारी गुप्ता, वीरगंज




